Wednesday, November 3, 2010

हरियाणवी संस्कृति को किया जिन्दा

RAKESH ROHILLA KURUKSHETRA


हरियाणवी संस्कृति को जिन्दा रखने के लिए किया जा रहा है एक अथक प्रयास, मृत्यु की कगार पर पहुंच चुकी हरियाणवी संस्कृति को हरियाणा दिवस के अवसर पर किया जा रहा है जिन्दा, हरियाणवी परिधान जो एक जमाने से संदूको में बंद होने से विलुप्त हो चूका था,
हरियाणवी संस्कृति को जिन्दा रखने के लिए हरियाणा दिवस अर्थात एक नवम्बर को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय द्वारा पिछले 25 वर्षो से निरंतर रत्नावली नामक कार्यकर्म चलाया जा रहा है, विलुप्त होती हरियाणवी संस्कृति को जिन्दा रखने के लिए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय यह एक अथक प्रयास किया जा रहा है, हरियाणवी संस्कृति का परिधान आज के आधुनिक युग में कही न कही मृत्यु की कगार पर था, लेकिन रत्नावली के माध्यम से ही सही उन परिधानों को आज की युवा पीडी के समक्ष पेश किया जा रहा है, जिससे कम से कम आज के युवा को हरियाणा की संस्कृति की पहचान का अहसास तो हो सके, हरियाणवी संस्कृति की पहचान घाघरा जब कुवि के ऑडिटोरियम में हरियाणवी गीत पर घूमा तो पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। मंच पर उतरे कलाकारों ने अपनी उम्दा प्रस्तुति से हरियाणवी संस्कृति को तो जीवंत किया ही साथ ही उसमें हरियाणवी वेश-भूषा का समावेश कर लोगों का ध्यान भी अपनी और आकर्षित किया । नई पीढ़ी हरियाणा दिवस समरोह रत्‍‌नावली में प्रस्तुति के लिए पूरी तरह से हरियाणवी टच में दिखी। जाहिर है अपनी विलुप्त होती संस्कृति को देख दर्शकों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा और वह भी कलाकारों से साथ झूमने लगे।
मौका कुवि में हर साल हरियाणा दिवस पर आयोजित होने वाले रत्‍‌नावली समारोह का था। अपनी तरह के देश के अनूठे एकमात्र थीम बेस भाषाई समारोह में कलाकारों द्वारा हरियाणवी परिधानों के साथ हरियाणवी संस्कृति को एक बार फिर से जिन्दा कर दिया। मंच पर उतरी महिला कलाकारों की टोली ने हरियाणवी भारी भरकम दामन की जगह बेशक हल्का रेशमी दामन पहनकर प्रस्तुतियां दी हों।लेकिन इससे हरियाणवी संस्कृति और परम्परागत पहनावे की याद ताजा जरुर हो गयी । वही इस पुरे मुद्दे पर युवाओ में पूरा जोश है, उनका कहना है कि आम जनजीवन से हरियाणवी वेश-भूषा विलुप्त हो चुकी है, ऐसे ही मौको पर इसका एहसास होता है, वही कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के युवा एवं सांस्कृतिक विभाग के निदेशक अनूप लाठर का कहना है कि एक जमाने में हरियाणवी संस्कृति बिलकुल ही विलुप्त होने कि कगार पर पहुंच चुकी थी लेकिन कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्रयास से इसको दोबारा से पुनर्जीवित किया गया, जो परिधान संदूको में बंद हो चुके थे आज उनको युवाओं के सामने लाया गया है, कम से कम युवाओं को इस माध्यम से अपनी संस्कृति और परिधान का एहसास हो सके,